गुवाहाटी 13 जूलाई (संवाद 365)। असम पुलिस के सिलसिलेवार मुठभेड़ को लेकर अब कई सवाल पैदा हो रहे हैं। नई सरकार आने के बाद जिस तरह से घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, उससे मानवाधिकार के उल्लंघन होने की बात कही जा रही है। लोगों का कहना है कि यह सारा साजिश मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा के इशारे पर हो रहा है। सरकार पुलिस को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। इन मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को स्वत संज्ञान लेते हुए हस्तक्षेप करना चाहिए।
राज्य के विपक्षी दलों का आरोप है कि असम पुलिस फर्जी मुठभेड़ कर छोटे-मोटे अपराधियों का सफाया कर रही है। यहां उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि 10 मई को डॉ. हिमंत विश्व शर्मा की अगुवाई में भाजपा गठबंधन सरकार ने सत्ता संभाली है।
उनके सत्ता संभालने के बाद से ही राज्य में अपराधियों के खिलाफ मुठभेड़ शुरू हुआ। राज्य में यह सिलसिला 1 जून से शुरू हुआ और अब तक असम पुलिस ने मुठभेड़ में 25 से अधिक घटनाओं को अंजाम दिया है। पुलिस का कहना है कि आरोपियों को उस वक्त गोली मारी गई है, जब वे हिरासत या छापेमारी के दौरान भागने का प्रयास कर रहें थे ।
गौरतलब है कि इस मुठभेड़ में हुए गोलीबारी में कम से कम पांच आरोपी की मौत हो चुकी है। पुलिस की मुठभेड़ में शिकार हुए अपराधियों में बलात्कारी, गौ तस्कर, ड्रग्स माफिया आदि शामिल है। बताया जाता है कि 11 जुलाई को पुलिस ने अभियुक्त जैनल आबेदीन को गोली मारी और इस गोलीबारी में उसकी मौत हो गई।
यह मुठभेड़ नगांव से करीब 28 किलोमीटर दूर ढिंग में हुई थी। क्षेत्र के विधायक अमीनुल इस्लाम का कहना है कि राज्य सरकार एक खास समुदाय को निशाना बनाकर फर्जी मुठभेड़ करवा रही हैं। उनका कहना था कि वह डकैत नहीं, बल्कि एक शराबी था।
गौरतलब है कि 5 जुलाई को मुख्यमंत्री ने थाना प्रभारियों के एक सम्मेलन में कहा था कि अपराधियों पर गोली दागना पुलिस का पैटर्न होना चाहिए। पुलिस अपराधियों को पैर में गोली मार सकती है। इसके बाद से तो ऐसा लग रहा है की मुठभेड़ की होड़ सी शुरू हो गई है।
इस संदर्भ में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. दिव्यज्योति सैकिया ने कहा कि जिस तरह से पुलिसिया गोलीबारी हो रही है, वह देखने में फर्जी मुठभेड़ जैसा ही लग रहा है। इस तरह की घटनाएं हमने पहले बिहार और यूपी राज्य में होते तो सुना था। वर्तमान असम सरकार पुलिस को अपना राजनीतिक हथियार बनाकर पूरे घटनाओं को अंजाम दे रही है, ऐसा प्रतीत होता है। यह सरासर मानवाधिकार का उल्लंघन है और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि खूंखार अपराधी या आतंकवादी के खिलाफ इस तरह का पैटर्न को सही भी कहे तो यह भी मानवाधिकार का उल्लंघन ही कहा जाएगा। लेकिन जिस तरह से मुख्यमंत्री के इशारे पर असम पुलिस काम कर रही है, उसे किसी भी हाल में जायज नहीं कहा जा सकता।
अभियुक्त को अपराधी प्रमाण करना कोर्ट या कानून का हक हैं। किसी भी अभियुक्त को सीधे तौर पर कोर्ट के ट्रायल के बिना अपराधी घोषित करना मानवाधिकार का उल्लंघन है।
इधर असम के आरटीआई कार्यकर्ता तथा विधायक अखिल गोगोई ने भी मुखमंत्री हिमंत पर उंगली उठाते हुए कहा की राज्य में जितने भी मुठभेड़ हो रहे हैं, वह प्रमाण करता है कि राज्य में पुलिसराज चल रहा है। यह सरासर मानवाधिकार का सीधा उल्लंघन है और इसमें आम आदमी को जबरन अपराधी बनाया जा रहा हैं। अखिल का यह भी आरोप है कि सरकार के खिलाफ उठने वाले आवाज को दबाने के लिए उसे जबरदस्ती अपराधी घोषित कर मुठभेड़ के बहाने हत्या का ब्लूप्रिंट बनाया जा रहा है।